अजमेर। 31 मार्च की अर्ध रात्रि को शीतला माता को पहला भोग लगाया जाएगा। शीतला माता के भक्तों के लिए यह पर्व बेहद ही खास होता है। शीतला अष्टमी के दिन पूजा के समय माता शीतला को पर मीठे चावलों का भोग लगाया जाता है। खासतौर पर इस दिन मां शीतला को बासी पकवानों का भोग लगाया जाता है और खुद भी बासी और ठंडा भोजन ग्रहण किया जाता है। हर साल चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि यानी होली के सात दिन बाद शीतला सप्तमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा-आराधना का विधान है। शीतला सप्तमी को बसौड़ा या बसोड़ा भी कहा जाता है। माता शीतला के भक्तों के लिए यह पर्व बेहद ही खास होता है। शीतला सप्तमी के दिन पूजा के समय माता शीतला को पर मीठे चावलों का भोग लगाया जाता है। ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं। खासतौर पर इस दिन मां शीतला को बासी पकवानों का भोग लगाया जाता है और खुद भी बासी और ठंडा भोजन ग्रहण किया जाता है। मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन पूरे विधि विधान के साथ पूजा करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख शांति बनी रहती है।