अजमेर। राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर में अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए एक बड़ा जन-आंदोलन भड़क उठा है। जो सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद तेज हुआ है, जिसमें अरावली की परिभाषा को संकुचित किया गया है, जिससे खनन और निर्माण की आशंका बढ़ गई है; लोग सड़कों और सोशल मीडिया पर उतरकर अरावली को बचाने, अवैध खनन रोकने और पर्यावरणीय संतुलन बहाल करने की मांग कर रहे हैं, जिसे दिल्ली का फेफड़ा मानते हैं.
आंदोलन के मुख्य कारण:
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा तय की, जिसमें 100 मीटर से ऊंची भूमि को अरावली माना गया, जिससे निचले और छोटे टीलों (जिन्हें पहले अरावली का हिस्सा माना जाता था) पर खनन का खतरा बढ़ गया है.
खनन और निर्माण का डर: प्रदर्शनकारियों को डर है कि इस फैसले से अवैध खनन, अतिक्रमण और बड़े पैमाने पर निर्माण को बढ़ावा मिलेगा, जिससे अरावली का वजूद मिट जाएगा और दिल्ली-एनसीआर की हवा और पानी पर बुरा असर पड़ेगा.
पर्यावरणीय संकट: लोग अरावली को दिल्ली-एनसीआर का “फेफड़ा” मानते हैं, और इसके विनाश से प्रदूषण, पानी की कमी और जैव विविधता का नुकसान होगा.
आंदोलन के स्वरूप:
सड़क पर प्रदर्शन: जयपुर,गुरुग्राम, और अन्य शहरों में सैकड़ों लोग सड़कों पर उतरे और सरकार से अरावली को बचाने की मांग की.
डिजिटल अभियान: #SaveAravalli जैसे हैशटैग के साथ सोशल मीडिया पर जोरदार अभियान चल रहा है.
जन-जागरण यात्राएं: 24 दिसंबर से माउंट आबू से ‘अरावली बचाओ संघर्ष’ जैसी यात्राएं शुरू की गई हैं.
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