अजमेर 18 अक्टूबर। कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से नवीनतम तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिए किए जा रहे कार्यों का शनिवार को जिला कलक्टर श्री लोक बन्धु द्वारा अवलोकन किया गया।
जिला कलक्टर श्री लोक बन्धु ने तबीजी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में किसानों तथा पशुपालकों को नवीनतम तकनीकी के संबंध में प्रशिक्षण प्रदान करने के विविध घटकों का अवलोकन किया। इससे किसानों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के बारे में कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. धर्मेंद्र सिंह भाटी तथा कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक श्री संजय तनेजा ने विस्तार से जानकारी प्रदान की।
_*किसानों की आय दोगुनी करने के दिए निर्देश*_
जिला कलक्टर श्री लोक बन्धु ने कहा कि जिले के किसानों को कृषि विज्ञान केन्द्र का अधिकतम लाभ मिलना चाहिए। इसके लिए प्रशिक्षण क्षमता बढ़ायी जाने की आवश्यकता है। किसानों को नवीनतम तकनीक से जोड़ने के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जाए। प्रशिक्षण वर्षपर्यन्त आयोजित करने के लिए निर्देशित किया गया। किसानों को फसलों की उन्नत किस्मों की भी जानकारी होनी चाहिए। किसानों के साथ-साथ कृषि विभाग के अधिकारियों एवं पर्यवेक्षकों का भी प्रशिक्षण होना चाहिए। सरकार किसानों की आय को दोगुना करने के लिए प्रयासरत है। इस दिशा में भी कार्य किया जाना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि अजमेर जिले में अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियां है। उसी के अनुसार खेतों की मिट्टी एवं पानी में भी विविधता है। इसे देखते हुए क्षेत्रानुसार फसलों की सलाह देने का कार्य कृषि विज्ञान केन्द्र विशेषज्ञता के साथ कर सकता है। साथ ही प्रति एकड़ उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए। सामान्यतः किसान पशुपालक के रूप में भी कार्य करते हैं। अधिक दुग्ध एवं अन्य उत्पाद करने वाले पशुओं की नस्लों को पशुपालकों को उपलब्ध कराना चाहिए। फसलों के प्रसंस्करण के लिए भी किसानों को प्रोत्साहित किया जाए।
_*मुर्गी पालन है लाभदायक*_
कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. धर्मेंद्र सिंह भाटी ने कृषि विज्ञान केंद्र के संपूर्ण सौर ऊर्जा से संचालित भवन तथा उसमें संचालित गतिविधियों के बारे में बताया। केवीके के द्वारा गिन्नी पाउल चकौर मुर्गी की इकाई भी संचालित की जाती है। यह साधारण मुर्गी की तुलना में कम बीमार पड़ती है। इससे मांस भी अधिक मिलता है। इसका पालन कर किसान अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। कड़कनाथ मुर्गी के अंडों में वसा फेट शून्य होने के कारण हृदय रोगियों एवं उच्च रक्तचाप रोगियों द्वारा उपयोग करने योग्य है। इसका मांस भी काले रंग का होता है। इसकी इकाई लगाकर कृषक अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। यह प्रजाति स्थानीय वातावरण में गत 8 वर्षों से अपनी संतति बढ़ा रही है।
उन्होंने बताया कि केवीके में हेचरी के माध्यम से पशुपालकों को लाभान्वित किया जाता है। पशुपालक अपने पक्षियों के अंडे आधुनिक मशीनरी वाली हेचरी में रखकर 21 दिन के बाद निःशुल्क चुजे ले जा सकते हैं। इसी प्रकार मुर्गी की अन्य प्रजातियां भी यहां उपलब्ध है। किसानों की आय में वृद्धि के लिए यह गतिविधियां बहुत उपयोगी है।
_*एजोला से मिलता है पशुओं को फ्री चारा*_
उन्होंने बताया कि पशुपालकों को पशुओं को निःशुल्क चारा उपलब्ध करवाने के लिए एजोला उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह जलीय फर्न 21 प्रतिशत तक प्रोटीन युक्त होता है। यह पशुओं के लिए बांटे के बराबर खुराक प्रदान करता है। प्रशिक्षण उपरांत कृषक अपने खेत बाडें में ही अजोला का फ्री में उत्पादन कर सकते हैं। इससे पशुओं के रखरखाव की लागत कम हो जाती है। यहां पशुओं को चारे के लिए नेपियर घास तथा त्री संकर बाजरे की प्रजातियां लगाई गई है। इनकी पौध एक बार लगाने के पश्चात आगामी 5 वर्षों तक 12 माह चारा उपलब्ध कराती है। लगातार काटने पर नई घास निरंतर निकलती रहती है।
_*खरगोश पालन से मिलेगा एक वर्ष में पांच गुना रिटर्न*_
उन्होंने बताया कि पशुपालक खरगोश पालन से आय का अतिरिक्त स्त्रोत तैयार कर सकते हैं। केवीके द्वारा 500 रूपए प्रति खरगोश की दर से खरगोश प्रदान किए जाते हैं। शिशु खरगोश 45 दिन के बाद बच्चे देने लगते हैं। प्रत्येक बार मादा खरगोश 8 से 12 बच्चे देती है। यह सभी आगामी 45 दिन में बच्चे देने में सक्षम हो जाते हैं। इनकी तेज वंश वृद्धि के कारण एक वर्ष में लागत का 5 गुना रिटर्न दे देते हैं। एक युवा खरगोश 3 हजार रूपए में बिकता है।
_*बकरी पालन में मिलती है अग्रिम सब्सिडी*_
उन्होंने बताया कि केवीके द्वारा अविशान प्रजाति के भेड़ के ब्रीडर पशुपालकों को उपलब्ध कराए जाते हैं। यह भेड़ एक बार में तीन बच्चे देती है। प्रति 6 माह में बच्चे देने से में यह भेड़ सक्षम होती है। इसी प्रकार सिरोही नस्ल के माध्यम से बकरी पालन का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। राष्ट्रीय आजीविका मिशन (एनएलएम) के सहयोग से 50 बेंच के माध्यम से 3000 व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। प्रशिक्षित युवा केंद्र सरकार के माध्यम से 50 प्रतिशत तक अग्रिम सब्सिडी के साथ ही 40 प्रतिशत बैंक ऋण भी प्राप्त कर सकते हैं। संपूर्ण परियोजना लागत का मात्र 10 प्रतिशत हिस्सा राशि ही पशुपालक को देनी होती है। यह रोजगार के लिए स्टार्टअप को एक नया अवसर प्रदान करता है।
_*मशरूम उगा सकते है कमरे में भी*_
उन्होंने बताया कि खेत के अभाव में भी व्यक्ति रोजगार के लिए मशरूम का उत्पादन कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। मशरूम उत्पादन कमरे अथवा झोपड़ी में किया जाता है। इसका अभी कृषि विज्ञान केंद्र में प्रशिक्षण चल रहा है। युवा इसका प्रशिक्षण प्राप्त कर घर के एक कमरे से आय का अतिरिक्त स्त्रोत तैयार कर सकते हैं। अजमेर शहर में इसकी काफी मांग है। लेकिन स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई यूनिट स्थापित नहीं है। स्थानीय मांग को पूरा करने के लिए भीलवाड़ा तथा जयपुर से मशरूम की आपूर्ति की जा रही है। ढ़ींगरी और बटन मशरूम का उपयोग सब्जी तथा दवा के रूप में होता है। होटल में सब्जी की ग्रेवी मशरूम के पाउडर से ही बनती है।
_*प्राकृतिक खेती का दिया जाता है प्रशिक्षण*_
उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए गिर गाय की यूनिट भी यहां संचालित की जा रही है। गौमूत्र और गोबर के माध्यम से कृषि के लिए आवश्यक खाद्य तथा रोग नाशक सामग्री बनाई जाती है। यहां के प्रशिक्षण एवं अनुभव से कृषक प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं। इसके परिणाम अच्छे आए हैं। प्राकृतिक खेती का दायरा बढ़ाने के लिए केंद्र प्रयासरत है। केंद्र द्वारा प्राकृतिक खेती से प्राप्त बीज भी किसानों को उपलब्ध कराए जाते हैं।
_*उपलब्ध है उच्च गुणवता के बीज*_
उन्होंने बताया कि जिला कलक्टर श्री लोक बन्धु ने बीज विधान केन्द्र को भी अवलोकन किया। बीज तैयार करने की प्रक्रिया को जीवन्त देखा। यहां मदर प्लांट से उच्च गुणवता वाले बीज तैयार किए जा रहे थे। उन्हें किसान बाजार से बहुत कम दर पर प्राप्त कर सकते हैं। इन बीजों की मुख्य विशेषता इनका स्थानीय परिस्थितियों में प्राकृतिक खेती के माध्यम से उर्वरक एवं रसायनमुक्त प्रक्रिया से प्राप्त करना है। इससे प्राकृतिक खेती करने वालों को प्रमाणित बीज उपलब्ध हो रहे है।
_*किसानों को बनाया जाता है उद्यमी*_
उन्होंने बताया कि किसानों को उद्यमी बनाने के लिए केवीके प्रयासरत है। इसके लिए फसल का वैल्यू एडिशन करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां लघु तेल मिल तथा लघु दाल मिल स्थापित की गई है। इनका उपयोग किसान निःशुल्क कर सकते हैं। किसान अपने तिल, मूंगफली, सरसों तिलहन तथा समस्त दालों का यहां लाकर निःशुल्क प्रसंस्करण कर सकते हैं। लघु तेल मिल तिलहन का एक घंटे में छः लीटर तेल निकालने में सक्षम है। यह लघु तेल मिल कोल्ड प्रेस विधि पर आधारित है। इससे निकला तेल लंबे समय तक ताजा बना रहता है। इसी प्रकार किसान अपना दलहन यहां लाकर लघु दाल मिल से दाल कर सकते है। यह सब किसानों के लिए निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। किसानों से बिजली के पैसे भी नहीं लिए जाते है।
_*अजमेर में मखाना उत्पादन पर हो रहा है कार्य*_
उन्होंने बताया कि केन्द्र द्वारा खेत में पानी भरा होने की स्थिति में फसल प्राप्त करने की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है। इसके लिए सिंघाड़े तथा मखाना की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वर्तमान में अतिवृष्टि के कारण काफी खेतों में लंबे समय तक पानी भरा रहता है। ऐसी परिस्थिति में किसानों की आय प्रभावित नहीं होनी चाहिए। शीघ्र ही अजमेर में मखाने की खेती
उन्होंने बताया कि केवीके किसानों को आय के वैकल्पिक स्त्रोत उपलब्ध कराने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करता है। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया जाता है। फूलों के मौसम में मधुमक्खी पालन किया जा सकता है। इससे एक वर्ष में ही लागत से अधिक प्राप्त हो जाता है। एक बार मधुमक्खी बॉक्स का ही खर्चा लगता है। इसके पश्चात शहद निकालने का ही काम रह जाता है। साथ ही मधुमक्खियों द्वारा परागण करने से फसल के उत्पादन में वृद्धि हो जाती है।
_*सहजन चाय पर किया जा रहा है शोध*_
उन्होंने बताया कि केवीके से जुड़े महिला स्वयं सहायता समूह द्वारा सामान्य चाय के स्थान पर विभिन्न औषधियों की हर्बल चाय भी उत्पादित की जा रही है। इसके अन्तर्गत आंवला चाय बहुत पसंद की जा रही है। आंवला चाय के गुणों को देखते हुए जिला कलक्टर श्री लोक बन्धु ने भी इसका स्वाद चखा। केवीके अब सहजन चाय के बारे में शोध कर रहा है। इसके परिणाम सामने आने पर जल्द ही सहजन चाय भी आमजन के लिए उपलब्ध रहेगी।