अजमेर। नई दिल्ली:* ब्राजील में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इस समूह के महत्त्व समेत कई अहम मसलों पर चर्चा की गई, जिनमें से एक प्रमुख मुद्दा आतंकवाद का था। इस मौके पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अनुपस्थित रहे। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सम्मेलन में आभासी माध्यम से ही शामिल हुए। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सम्मेलन में मौजूदगी को एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश दिया और कहा कि आतंक के पीड़ितों और समर्थकों को एक ही तराजू पर नहीं तौला जा सकता। आतंकियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने में किसी भी देश को हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।
ब्रिक्स जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी को न केवल पाकिस्तान, बल्कि चीन के लिए भी एक नसीहत के रूप देखा जा रहा है। पाकिस्तान जहां आतंकवाद को खाद-पानी देता है, वहीं चीन ने हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कई पाकिस्तानी आतंकियों को सूचीबद्ध करने के प्रयासों को अवरुद्ध किया है। इससे इन दोनों देशों की कथनी और करनी में अंतर साफ नजर आता है। पाकिस्तान दुनिया को यह दिखाने का प्रयास करता है कि वह खुद आतंकवाद से पीड़ित है, मगर दूसरी ओर वह आतंकियों को प्रशिक्षित कर उन्हें भारत के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करता है।
*ब्रिक्स सम्मेलन में अनुपस्थित रहे शी जिनपिंग:*
ब्रिक्स हाल के वर्षों में एक प्रभावशाली समूह के रूप में उभरा है। इसमें भारत, चीन व रूस समेत दुनिया की ग्यारह प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देश शामिल हैं। ब्रिक्स देश एक ‘बहुध्रुवीय विश्व’ के लिए जोर दे रहे हैं, जहां शक्ति अधिक बंटी हुई हो। ऐसे में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ब्रिक्स सम्मेलन से अनुपस्थित रहना चौंकाने वाला है। जिनपिंग के सत्ता संभालने के बाद यह पहली बार है कि वे इस सम्मेलन से दूर रहे। वह भी तब, जब वे ब्रिक्स समूह को अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी गुट के खिलाफ एक आर्थिक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं।भू-राजनीतिक मामलों के लिहाज से देखें तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि ब्रिक्स के हालिया विस्तार ने चीन के लिए इसके वैचारिक मूल्य को कम कर दिया है। इसका एक कारण यह भी माना जा रहा है कि चीन, अमेरिका के साथ व्यापार संघर्ष के कारण घरेलू आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है और जिनपिंग इन दिनों घरेलू अर्थव्यवस्था को दिशा देने में उलझे हुए हैं।
*ब्रिक्स को अपने आंतरिक ढांचे और प्रणालियों को सुदृढ़ करना होगा:*
बहरहाल, ब्रिक्स सम्मेलन में आतंकवाद के अलावा, मानवीय मूल्यों पर आधारित कृत्रिम मेधा, अमेरिकी शुल्क, मानवता के विकास के लिए शांतिपूर्ण व सुरक्षित वातावरण के मसले पर भी चर्चा हुई। इसमें दोराय नहीं कि ब्रिक्स देशों को अपनी साझा चुनौतियों का सामना करने के लिए एकजुट होकर सामूहिक प्रयास करने होंगे।ऐसे समय में जब पश्चिम एशिया से लेकर यूरोप तक आज दुनिया विवादों और संघर्षों से जूझ रही है, ब्रिक्स जैसे समूहों की प्रासंगिकता और भी अहम हो जाती है। मगर, वैश्विक मंच पर गंभीरता से लिए जाने के लिए ब्रिक्स को पहले अपने आंतरिक ढांचे और प्रणालियों को सुदृढ़ करना होगा। कथनी और करनी के बीच अंतर खत्म करना होगा। साथ ही ब्रिक्स देशों को एकजुट होकर उन प्रयासों का पुरजोर समर्थन करना होगा, जो दुनिया को आतंकवाद, विभाजन व संघर्ष से दूर और संवाद, सहयोग व समन्वय की ओर ले जाए।