अजमेर। जयपुर राजस्थान के सरकारी कर्मचारियों के लिए बनी मुफ्त इलाज योजना (आरजीएचएस) में करोड़ों रुपए का फर्जीवाड़ा सामने आया है। डॉक्टर और मेडिकल स्टोर संचालक मिलकर फर्जी बिल बनाकर उन दवाइयों का भुगतान उठा रहे थे, जो कभी बेची ही नहीं गई।
अबतक 54 करोड़ के फर्जी बिल पकड़ में आ चुके हैं। सूत्रों की मानें तो यह आंकड़ा 200 करोड़ पार कर सकता है। भास्कर टीम ने इस पूरे मामले की पड़ताल की।
वित्त विभाग के पास एक मामला ऐसा सामने आया जिसमें जयपुर के एसएमएस अस्पताल में कार्यरत एक सरकारी डॉक्टर ने अपने निजी क्लीनिक से ओपीडी की 500 से ज्यादा पर्चियां तैयार की।
उन पर लिखी दवाइयों का दो फार्मा शॉप ने करोड़ों रुपए का फर्जी बिल बनाया और भुगतान के लिए भेज दिया।
ये फर्जीवाड़ा कैसे किया जा रहा है? पढ़िए संडे बिग स्टोरी में…
वित्त विभाग ने AI की मदद से पकड़ी गड़बड़ी
14 श्रेणियों के सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों को मुफ्त इलाज के लिए राजस्थान सरकार स्वास्थ्य योजना (RGHS) का एक कार्ड जारी करती है।
इस कार्ड के जरिए कोई भी बीमारी होने पर सरकारी कर्मचारी कैशलेस इलाज करवा सकता है। डॉक्टर जो भी दवाई लिखकर देता है, वो उसे आरजीएचएस से अधिकृत मेडिकल स्टोर पर बिना कोई पैसा दिए मिल जाती है।
बाद में मेडिकल स्टोर उस दवाई का बिल बनाकर भुगतान के लिए वित्त विभाग को क्लेम होने के लिए भेजते हैं। पिछले जनवरी से मार्च तक अचानक करोड़ों रुपए के क्लेम बढ़े तो वित्त विभाग को शक हुआ।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से ऑडिट करवाने पर पूरा फर्जीवाड़ा सामने आया।
आरजीएचएस के तहत वित्त विभाग के पास जब क्लेम पहुंचे तो उनकी गहनता से जांच में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ।
आरजीएचएस के तहत वित्त विभाग के पास जब क्लेम पहुंचे तो उनकी गहनता से जांच में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ।
कई डॉक्टर और मेडिकल स्टोर संचालक मिलकर आरजीएचएस कार्डधारकों की ओपीडी दिखाकर फर्जी पर्चियां तैयार कर रहे हैं। उन पर महंगी दवाइयां लिखकर, बिलों का भुगतान उठाया जा रहा है। इसी तरह कई अस्पतालों की भी इस फर्जीवाड़े में मिलीभगत सामने आई है।
केस स्टडी : दो मेडिकल स्टोर ने भेजे करोड़ों के बिल, एक ही डॉक्टर की मिली पर्चियां
जयपुर की 2 फार्मेसी (दवा शॉप) से एक ही डॉक्टर की लिखी पर्ची के जरिए करोड़ों रुपए का बिल पास होने के लिए वित्त विभाग को भेजा। ऑडिट टीम ने उन पर्चियों की जांच की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
दरअसल, बिना किसी मेडिकल हिस्ट्री, रोग का लक्षण या किसी प्रकार की जांच लिखे डॉक्टर की ओपीडी पर्चियों पर दवाइयां लिखी गई थी।
उन दवाइयों के दो फार्मेसी – अर्पिता मेडिकल स्टोर और लक्ष्मी मेडिकल स्टोर ने बिल काटे गए। फिर उन बिलों को क्लेम होने के लिए आरजीएचएस पोर्टल पर भेज दिया गया।
ओपीडी स्लिप में बड़ी चालाकी से एडिटिंग की गई है, क्लिनिक का लोगो और नाम छिपाने के लिए ऊपर अन्य कागज का टुकड़ा रखकर उसकी जिरोक्स कॉपी तैयार की गई है।
ओपीडी स्लिप में बड़ी चालाकी से एडिटिंग की गई है, क्लिनिक का लोगो और नाम छिपाने के लिए ऊपर अन्य कागज का टुकड़ा रखकर उसकी जिरोक्स कॉपी तैयार की गई है।
पर्चियों पर की एडिटिंग
डॉक्टर मनोज कुमार जैन के एसएमएस अस्पताल में जनरल फिजीशियन हैं। ओपीडी उसके निजी क्लिनिक ‘आरव डायबिटीज एंड मल्टी स्पेशिलिटी यूनिट’ की पर्ची पर काटी गई।
लेकिन ओपीडी पर सील (स्टैंप) एसएमएस अस्पताल वाली इस्तेमाल की गई। चूंकि नियमानुसार सरकारी डॉक्टर को निजी क्लिनिक की पर्ची पर ओपीडी नहीं कर सकता। ऐसे में एडिटिंग का तरीका निकाला गया।
ओपीडी पर्ची के सबसे ऊपर लिखे निजी क्लिनिक का नाम छिपाकर, उस पर डॉक्टर मनोज कुमार जैन की एसएमएस वाली ओपीडी स्लिप का ऊपरी हिस्सा लगाकर फोटो खींची गई।
फिर उस ओपीडी पर्ची आरजीएचएस पोर्टल पर क्लेम करने के लिए भेजा। ऐसी करीब 500 ओपीडी पर्चियों में छेड़खानी सामने आई है।
वित्त विभाग की पड़ताल में एक पर्ची ऐसी सामने आई जिसमें एक आरजीएचएस कार्ड धारक मोहनलाल शर्मा की पत्नी का नाम सुशीला से सुशील शर्मा लिखकर दो बार दवाइयां ओपीडी पर्ची बनाई गई।
तीसरी बार असली नाम सुशीला शर्मा से बिल काटा गया, ताकि फर्जीवाड़ा पकड़ में नहीं आए।
6 जनवरी की पर्ची जिसमें सुशाली को सुशील शर्मा दिखाया गया है।
6 जनवरी की पर्ची जिसमें सुशाली को सुशील शर्मा दिखाया गया है।
वित्त विभाग की ऑडिय में सामने आ रही ऐसी गड़बड़ियां
आरजीएचएस कार्ड धारकों के नाम पर मेडिकल स्टोर और डॉक्टर मिलकर फर्जी पर्चियां तैयार कर रहे हैं।
वित्त विभाग का मानना है कि अगर मरीज के सामने होने पर लिखी जाती तो ऐसा होना संभव ही नहीं था।
पर्चियों पर मरीज की सामान्य खून की जांच के नतीजे मेंशन हैं, लेकिन इससे जुड़ी कोई भी जांच रिपोर्ट नहीं लगाई गई है।
मरीज की कोई भी मेडिकल हिस्ट्री डॉक्टर की ओपीडी पर्चियों पर नहीं लिखी गई।
पर्ची पर डॉक्टर के निजी क्लिनिक का नाम होना और पोर्टल पर उसे छिपाना एक बड़े फर्जीवाड़े का सबूत है।
इस मामले में दोनों फार्मेसियों के आरजीएचएस लाइसेंस को रद्द कर दिए हैं। डॉक्टर के खिलाफ एक्शन लेने के लिए स्वास्थ्य विभाग को लेटर लिखा गया है।
मरीज RGHS में हैं या कहां से दवाई ले रहे हैं हमें नहीं पता- डॉ. मनोज जैन
जब इस बारे में डॉक्टर मनोज जैन से बात की गई तो उनका साफ कहना था कि उन्हें इस पूरे मामले की कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘अब तक विभाग ने मुझसे इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा है।
वित्त विभाग ने की रिकवरी की तैयारी
प्रदेश में आरजीएचएस के तहत 500 से अधिक अस्पताल है, जहां हजारों मरीज ओपीडी और आईपीडी में इलाज लेते हैं। आरजीएचएस योजना में लगातार डॉक्टरों और मेडिकल स्टोर संचालकों की मिलीभगत से गड़बड़ियां सामने आ रही हैं।
अब तक इस योजना में 54 करोड़ रुपए से ज्यादा की गड़बड़ी का खुलासा हो चुका है। अब सरकार रिकवरी की तैयारी कर रही है। वित्त विभाग ने इस मामले में सख्त कार्रवाई करते हुए गड़बड़ी करने वाले सभी संबंधितों से राशि की रिकवरी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
वित्त विभाग के प्रमुख सचिव नवीन जैन ने बताया कि हर दिन आरजीएचएस के 25,000 से अधिक क्लेम आते हैं। कभी-कभी ये संख्या 40,000 तक पहुंच जाती है। इस स्थिति में एक स्पेशल टीम लगातार ऑडिट कर रही है।
गड़बड़ी सामने आने के बाद नोटिस जारी किए जाते हैं।
कैसे उठाया जाता है क्लेम?
क्लेम उठाने के लिए मेडिकल स्टोर आरजीएचएस की वेबसाइट पर लॉगिन करते हैं। इस दौरान फार्मेसी बिल, डॉक्टर का वैध प्रिस्क्रिप्शन (ओपीडी पर्ची) और मरीज का आरजीएचएस कार्ड स्कैन कर अपलोड करना जरूरी होता है।
सभी दस्तावेज अपलोड करने के बाद ‘सबमिट’ बटन पर क्लिक करना होता है, जिसके तुरंत बाद एक यूनिक टीआईडी (TID) नंबर जनरेट होता है।
इस टीआईडी नंबर की सहायता से क्लेम की स्थिति बाद में ऑनलाइन ट्रैक की जा सकती है। यह ध्यान रखना जरूरी है कि बिल तभी क्लेम कर सकते हैं, जब दवाएं आरजीएचएस पैनल में शामिल फार्मेसी से खरीदी गई हों।
डॉक्टर की पर्ची की वैधता सात दिन से अधिक न हो। साथ ही, एक बार में अधिकतम एक महीने की दवाओं का ही बिल उठाया जा सकता है। यदि दवा पर्ची किसी निजी डॉक्टर का है, तो उसे पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य होता है, तभी क्लेम स्वीकृत होता है।