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अजमेर, 23 दिसंबर । इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जमाने में उपभोक्ताओं को भी समय के साथ शिक्षित और जागरूक होने की महत्ती आवश्यकता है। यह कहना है न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग अजमेर, टोंक, भीलवाड़ा में कार्यरत सदस्य दिनेश चतुर्वेदी का उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस,कम्प्यूटर एवं नए नए अत्याधुनिक सूचना संचार के साधन विकसित होने के कारण विश्व में बाजारवाद में तब्दीली आई है इसके चलते आज विश्व में कहीं भी बैठा व्यक्ति ऑनलाइन शॉपिंग कर कोई भी वस्तु अपने उपभोग की खरीद फरोख्त कर सकता है। उपभोक्ताओ को सूचना एवं संचार के इन साधनों से सुविधा मिली है वहीं इनके दुरुपयोग से साइबर क्राइम भी बढ़ा है उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति एवं नई टेक्नोलॉजी के बारे में शिक्षित एवं जानकार नहीं होने से साइबर क्राइम एवं उपभोक्ताओं का शोषण करने वाले अपराधियों के शिकार हो जाते है । उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति एवं नई टेक्नोलॉजी के बारे में शिक्षित और समझदार हो तो शोषण के शिकार होने से बच सकते है । यदि कोई उपभोक्ता इनके शिकार भीं हो जाते है पीड़ित उपभोक्ता को न्याय प्रदान करने के लिए संविधान में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बना रखा है जिसमें समय के साथ नई तकनीकी आने से बदलाव कर नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 बनाया है जो 20 जुलाई 2020 को लागू किया गया है उसके तहत उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में अपना परिवाद दर्ज करवाकर राहत पा सकते है। प्रति वर्ष 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस,15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया जाता है। भारत के राष्ट्रपति ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को 24 जुलाई 1986 को स्वीकारा था। इसलिए प्रतिवर्ष 24 दिसंबर को उपभोक्ता को जागरूक करने के लिये राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाते है।

उपभोक्ताओं को शोषण के शिकार होने पर उन्हें राहत देने के लिए देश में न्यायालय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग दिल्ली, प्रत्येक राज्य में राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, जिले में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग की स्थापना कर रखी है।

उपभोक्ताओं को खरीददारी करते समय बिल अवश्य ले , दुकान,कंपनी का नाम पता ले और उन्हें सुरक्षित रखे,खराब सामान देने पर या अधिक राशि लेने पर शिकायत करने की आदत डाले, आजकल नई टेक्नोलॉजी आने से उपभोक्ताओं को सजग रहने की आवश्यकता है। साइबर क्राइम करने वाले अपराधी उपभोक्ताओं के शिक्षित और जागरूक सचेत नहीं होने का फायदा उठाते हुए आये दिन शोषण का शिकार कर रहे है । उपभोक्ताओं को लालच और डर दिखाकर उनसे उनकी पूरी जानकारी लेकर उन्हें ठगी के शिकार बना देते है। साइबर क्राइम करने वाले अपराधी उपभोक्ताओं के मोबाइल नंबर लेकर उन्हें कोई बड़ा पुलिस अधिकारी,बैंक का अधिकारी बनकर उन्हें लालच और डर दिखाकर उनसे बैंक डिटेल्स,एटीएम नंबर, ओटीपी, मोबाइल ऐप इंस्टॉल, फर्जी वेबसाइट के लिंक पर जाने,उनके परिवार की जानकारी देने पर मजबूर कर देते है फिर उनको वो डिजिटल अरेस्ट कर उनके बैंक से पैसा निकालने सहितअन्य ठगी की वारदात को अंजाम देते है इसके लिए उपभोक्ताओं को चाहिए कि वो उनके कहें अनुसार कोई कार्य नहीं करे उनके चंगुल में फंसने पर उनका फोन डिस्कनेक्ट कर दे और त्वरित गृह मंत्रालय द्वारा जारी टोल फ्री नंबर 1930 पर या थ्री डब्ल्यू साइबर क्राइम गवर्मेंट डॉट कॉम पर शिकायत दर्ज कराए। साइबर क्राइम से बचाव के लिए 122 नंबर भी शुरू किया जा रहा है। साइबर क्राइम होने पर टोल फ्री नंबर 1930 पर शिकायत करने पर उपभोक्ताओं के बैंक खाते से निकाली जा रही राशि पर रोक लगाने,संबंधित निकटतम साइबर क्राइम पुलिस थाने पर सूचना देकर उपभोक्ताओं की मदद की जाती है। इसी प्रकार सामान्य उपभोक्ता क्राइम पर राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्प लाइन 1800114000 एवं 1915 पर एवं राज्य आयोग हेल्प लाइन 18001806030 पर शिकायत दर्ज करवाकर त्वरित राहत प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा प्रत्येक जिला मुख्यालय में स्थापित न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में तीन प्रतियों में अपना परिवाद दर्ज करवाकर न्याय प्राप्त कर सकते है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ताओं को कई अधिकार दिए गए हैं: 

उपभोक्ताओं को सुरक्षा का अधिकार है.

उपभोक्ताओं को सूचित होने का अधिकार है.

उपभोक्ताओं को चुनने का अधिकार है.

उपभोक्ताओं को सुने जाने का अधिकार है.

उपभोक्ताओं को निवारण पाने का अधिकार है.

उपभोक्ताओं को उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार है.

उपभोक्ताओं को उचित सेवा और वस्तु पाने का अधिकार है.

इस अधिनियम के तहत, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कई प्रावधान किए गए हैं: 

इस अधिनियम में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना का प्रावधान है. यह प्राधिकरण अनुचित व्यापार प्रथाओं, भ्रामक विज्ञापनों, और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से जुड़े मामलों को नियंत्रित करता है। वर्तमान समय में उपभोक्ताओं को राहत प्रदान करने के लिए वर्चुअल हियरिंग एंड डिजिटल एक्सेस टू कंज्यूमर जस्टिस पर भी जोर दिया जा रहा है। इसमें ईमेल द्वारा तामील,वीडियो कॉन्फ्रेसिंग द्वारा सुनवाई सहित अन्य कार्य भी शुरू हो रहे है। वर्चुअल हेयरिंग्स और डिजिटल एक्सेस टू कंज्यूमर जस्टिस का तात्पर्य है कि उपभोक्ताओं को न्याय देने के लिए न्यायिक प्रणाली में डिजिटल तकनीकों और वर्चुअल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा रहा है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से COVID-19 महामारी के दौरान तेजी से विकसित हुई, जब पारंपरिक अदालतें फिजिकल तौर पर काम करने में असमर्थ थीं। इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को न्याय तक तेज, किफायती और सुलभ पहुंच प्रदान करना है।

 

वर्चुअल हेयरिंग्स के लाभ:

 1. सुलभता में सुधार:

उपभोक्ता अपने घर से ही न्यायालय की कार्यवाही में भाग ले सकते हैं, जिससे यात्रा और समय की बचत होती है।

 2. तेज़ न्याय वितरण:

तकनीक के कारण मामलों की सुनवाई में देरी कम होती है, और प्रक्रिया तेज होती है।

 3. लागत में कमी:

पारंपरिक अदालतों की तुलना में डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग सस्ता है, क्योंकि इससे यात्रा और अन्य खर्चे बचते हैं।

 4. पारदर्शिता:

वर्चुअल हेयरिंग्स रिकॉर्ड की जा सकती हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

 

डिजिटल एक्सेस के लिए चुनौतियाँ:

 1. डिजिटल डिवाइड:

ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट की कमी और तकनीकी ज्ञान की सीमाएँ डिजिटल न्याय तक पहुंच को बाधित कर सकती हैं।

 2. प्राइवेसी और डेटा सुरक्षा:

वर्चुअल हेयरिंग्स के दौरान संवेदनशील जानकारी लीक होने का खतरा होता है।

 3. तकनीकी खामियाँ:

इंटरनेट कनेक्टिविटी और तकनीकी गड़बड़ियों से कार्यवाही बाधित हो सकती है।

 4. मानव संपर्क का अभाव:

वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर न्यायाधीश, वकील और उपभोक्ताओं के बीच सीधा संवाद सीमित हो सकता है।

 

डिजिटल एक्सेस बढ़ाने के उपाय:

 1. इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार:

ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में इंटरनेट और तकनीकी उपकरणों की सुलभता बढ़ाना।

 2. डिजिटल साक्षरता:

लोगों को डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करना।

 3. डेटा सुरक्षा कानून:

संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा के लिए मजबूत डेटा प्रोटेक्शन कानून लागू करना।

 4. हाइब्रिड मॉडल:

वर्चुअल और फिजिकल हेयरिंग्स का मिश्रण, ताकि दोनों तरीकों के लाभ मिल सकें।

 

निष्कर्ष:

 

वर्चुअल हेयरिंग्स और डिजिटल एक्सेस उपभोक्ता न्याय में क्रांति ला सकते हैं। यह न्याय प्रणाली को अधिक समावेशी, कुशल और आधुनिक बना सकता है। हालांकि, इसे पूरी तरह प्रभावी बनाने के लिए डिजिटल डिवाइड और तकनीकी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।

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