Mon. Oct 7th, 2024
20240312_191052

 

             अजमेर, 12 मार्च। राजस्व न्यायालयों के लम्बित प्रकरणों के त्वरित निस्तारण के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन करने के सम्बन्ध में सम्भागीय आयुक्त श्री महेशचन्द शर्मा की अध्यक्षता में बैठक का आयोजन किया गया। इसमें सम्भाग के समस्त अतिरिक्त जिला कलक्टर्स ने जिले की रिपोर्ट से अवगत कराया। 

            सम्भागीय आयुक्त श्री महेश चन्द शर्मा ने कहा कि राजस्व मण्डल एवं अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों में वर्षो लम्बित मूल प्रकरणों एवं अपीलीय प्रकरणों के त्वरित निस्तारण के लिए सरकार द्वारा निर्देश जारी किए गए है। राज्य सरकार की ओर से अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों द्वारा न्यायिक प्रक्रिया में लम्बित प्रकरणों के शीघ्र निस्तारण के सम्बन्ध में मानक संचालन प्रक्रियायें (एसओपी) जारी किए गए है। इसके अनुसार 10 वर्ष से अधिक पुराने लम्बित प्रकरणों को आॅल्डेस्ट केसेज की श्रेणी में रखा जाकर त्वरित निस्तारण किया जाए। ऐसे आॅल्डेस्ट केसेज की श्रैणी की पत्रावलियां लाल फाईल कवर में संधारित की जाए। सभी अधीनस्थ न्यायालयों के 5 वर्ष से पुराने प्रकरणों की आदेशिका पीठासीन अधिकारी द्वारा स्वयं की हस्तलेखनी द्वारा लिखी जाएगी। 

               उन्होंने कहा कि न्यायालयों में लम्बित वादों एवं अपीलों की समयावधि के आधार पर सूची अर्थात 5 वर्ष से अधिक, 10 वर्ष से अधिक, 20 वर्ष से अधिक बनाई जाकर पीठासीन अधिकारी द्वारा प्रत्येक माह जिला कलक्टर को भिजवाई जाएगी। जिला कलक्टर ऐसी सूची की समीक्षा कर लम्बित प्रकरणों के शीघ्र निस्तारण के लिए उचित निर्देश अधीनस्थ राजस्व न्यायालय को जारी करेंगे। जिला कलक्टर द्वारा की गई कार्यवाही की समीक्षा सम्भागीय आयुक्त की अध्यक्षता वाली एरियर रिव्यू समिति एवं राजस्व विभाग द्वारा समय-समय पर की जाएगी। सम्मन की तामील एवं लिखित प्रस्तुत किए जाने एवं अभिकथनों में संशोधन के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में विहित समयावधि का कठोरता से पालन करें। 

              उन्होंने कहा कि न्यायालय वादों का निस्तारण वैकल्पिक वाद निस्तारण अन्तर्गत धारा 89 सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के माध्यम से करवाए जाने को प्रोत्साहित करें। न्यायालय अस्थाई निषेधाज्ञा पारित किए जाने में सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 39 के प्रावधानों की पालना सुनिश्चित करें। जिला कलक्टर के स्तर से इस सम्बन्ध में विशेष रूप से समीक्षा की जाए। मौखिक बहस तुरन्त एवं निरन्तर सुनी जाकर शीघ्र निर्णय पारित किया जाएगा। 

                 उन्होंने कहा कि सप्ताह मेें 3 दिवस को न्यायालय उपखण्ड अधिकारी, सहायक जिला कलक्टर, अतिरिक्त जिला कलक्टर एवं जिला कलक्टर नियमित रूप से मुकदमों की सुनवाई करेंगे। जिला कलक्टर यह सुनिश्चित करेंगे कि इस 3 दिवसीय अवधि के दौरान न्यायालय समय में ऐसे अधिकारियों की अन्य निरीक्षण एवं भ्रमण या प्रभारी के रूप में अन्य दायित्व अधिरोपित नहीं कर न्यायालय की कार्यवाही निर्बाध रूप से संचालित करावें।

                 उन्होंने कहा कि अनेक प्रकरण विधायक विवाद्यक विरचित किए जाने, बहस या निर्णय पारित किए जाने के स्तर पर लम्बित है जो कि पूर्णतः न्यायालय स्तर से की जाने वाली कार्यवाही है। ऐसे प्रकरणों में बिना कोई देरी अथवा स्थगन दिए तत्काल कार्यवाही कर निस्तारित करावें। राज्य सरकार के हित विपरीत आदेश पारित किए जाने से पूर्व न्यायालय द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि राजकीय अधिवक्ता एवं सरकारी पैरोकार एवं प्रकरण के प्रभारी अधिकारी सुनवाई में उपस्थित होंवे। उनकों सुनवाई का समुचित अवसर प्रदान कर ही गुणावगुण पर निर्णय पारित किया जाए। 

                उन्होंने कहा कि न्यायालय अनावश्यक स्थगन से बचें एवं स्थगन के सम्बन्ध में सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 17 में विहित प्रावधानों की पालना करें। 10 वर्ष से पुराने प्रकरणों में स्थगन दुर्लभ से दुर्लभतम स्थिति में ही प्रदत्त किया जाए। इसका न्यायालय आदेशिका में कारण उल्लेख किया जाए। ऐसे प्रकरणों में आगामी तिथि एक सप्ताह के भीतर प्रदत्त की जाए। सभी अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों की समीक्षा जनरेलाईज्ड काॅर्ट मैनेजमैन्ट सिस्टम पोर्टल के माध्यम से राजस्व मण्डल एवं राजस्व विभाग पाक्षिक एवं मासिक रूप से की जाएगी। इस जीसीएमएस पोर्टल को अद्यतन रखा जाए। 

              उन्होंने कहा कि अधीनस्थ राजस्व न्यायालय द्वारा पारित निर्णय की प्रति अनिवार्य रूप से जिला कलक्टर एवं निबंधक राजस्व मण्डल को यथाशीघ्र प्रेषित की जाएगी। इससे प्रकण में राजहित में उचित कार्यवाही की जा सकेगी। अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों द्वारा राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 251ए एवं राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 128, 131 एवं 136 के प्रकरणों का पृथक-पृथक रजिस्टर तैयार कर मासिक रूप से तहसीलदार एवं पटवारियों के साथ भी समीक्षा की जाए। राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 53 के सम्बन्ध में तहसीलदार के द्वारा विभाजन प्रस्ताव (कुरेजात रिपोर्ट) समय पर न्यायालय को प्रेषित करना सुनिश्चित करें। राज्य सरकार के प्रति अनुतोष सम्बन्धी प्रकरणों पर गुलाबी या विशेष रंग का फाईल कवर होना चाहिए। पीठासीन अधिकारियों के द्वारा प्रकरण प्रस्तुतिकरण के समय ही न्यायालय की क्षेत्राधिकारिता, सुसंगत धारा, वाद एवं प्रार्थना पत्रा का प्रकार सुनिश्चित कर ही प्रकरण दर्ज किया जाए।

 

 

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *